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बहनें / असद ज़ैदी
Kavita Kosh से
कोयला हो चुकी हम बहनों ने कहा रेत में धँसते हुए
ढक दो अब हमें चाहे हम रुकती हैं यहाँ तुम जाओ
बहनें दिन को हुलिया बदकर आती रहीं
बुखार था हमें शामों में
हमारी जलती आँखों को और तपिश देती हुई बहनें
शाप की तरह आती थीं हमारी बर्राती हुई
ज़िन्दगियों में बहनें ट्रैफ़िक से भरी सड़कों पर
मुसीबत होकर सिरों पर हमारे मण्डराती थीं
बहनें कभी सान्त्वना पाकर बैठ जाती थीं हमारी पत्नियों के
अन्धेरे गर्भ में बहनें पहरा देती रहीं