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बहस के बाद भी / अनिरुद्ध नीरव

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बहस के बाद भी
आगे बहस है
बहस के पेंच के ऊपर
न कोई पेंचकस है ।

बहस में
क्या ग़लत है ?
सब सही है
दलीलें हैं
मिसल है
बतकही है ।
नहीं तो फ़कत
कोई नतीजा
हर इक मसला
वहीं पर जस का तस है ।

ज़हन आला
क़िताबें फ़लसफ़ा हैं ।
बहस में
इल्म है इल्ज़ाम है
दावा दफ़ा है ।
कहीं ज़िन्दा जिगर
मज़बूत दिल है
तो कहीं कमज़ोर नस है ।

बहस पत्थर के फल
काग़ज़ की रोटी
बहस में लोइयाँ तो हैं
मगर सब
हो गईं शतरंज-गोटी ।

ये कोई खेल है
रस्साकसी
या रास रस है ?