भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बहस के बाद भी / अनिरुद्ध नीरव
Kavita Kosh से
बहस के बाद भी
आगे बहस है
बहस के पेंच के ऊपर
न कोई पेंचकस है ।
बहस में
क्या ग़लत है ?
सब सही है
दलीलें हैं
मिसल है
बतकही है ।
नहीं तो फ़कत
कोई नतीजा
हर इक मसला
वहीं पर जस का तस है ।
ज़हन आला
क़िताबें फ़लसफ़ा हैं ।
बहस में
इल्म है इल्ज़ाम है
दावा दफ़ा है ।
कहीं ज़िन्दा जिगर
मज़बूत दिल है
तो कहीं कमज़ोर नस है ।
बहस पत्थर के फल
काग़ज़ की रोटी
बहस में लोइयाँ तो हैं
मगर सब
हो गईं शतरंज-गोटी ।
ये कोई खेल है
रस्साकसी
या रास रस है ?