बहारें लौट आयी हैं / जनार्दन राय
बहारें लौट आयी हैं, चमन खुशियाँ मनाओ,
खुशी का राग गाओ, स्नेह वीणा तुम बजाओ।
धरा सूखी तुम्हारी थी, नहीं था बून्द भर जल,
सुमन थे सूखते जाते सदा निज हाथ मल-मल।
कलियाँ रो रही थी लख निराशा के सदा पल,
कि जिसकी चाह थी वह दूर थी रह विरह में जल।
उमड़ती आ रही है स्नेह गंगा तुम नहाओत्र8।
बहारें लौट आयी है चमन खुशियाँ मनाओ,
खुशी का राग गाओ स्नेह-वीणा तुम बजाओ।
गगन में छा गये हैं श्याम बादल सघन होकर,
मन के मोर नाचो तुम उसे लख मगन होकर।
खुशी की रात आयी है सभी साधन सजोकर,
मना लो मौज तुम आज जी-भर मस्त होकर।
जगाओ काम को लो प्रेरणा इसको जगाओ,
बहारें लौट आयी हैं चमन खुशियाँ मनाओ।
मिलन की रात आयी है प्रतीक्षा के अनन्तर,
धरा नभ को चुनौती दे रही लख कुछ न अन्तर।
बनी है मानवी देवी स्वरूपा आज सत्वर,
किरण है ज्योति की फूटी बनी क्या ही प्रखरतर।
दिवाकर से कहो तुम आज फिर न प्रभात लाओ,
बहारें लौट आयी हैं चमन खुशियाँ मनाओ।
खुशी का राग गाओ स्नेह-वीणा तुम बजाओ।
सहायक हैं जगत के नाथ तो फिर क्या कमी है,
युगल जोड़ी रहे आनन्द, सूखी भी नमी है।
सघन हो स्नेह-तरु साखा मिली अच्छी जमी है,
पवन, पानी, किरण दो साथ फल तो मौसिमी है।
जवाहर और हीरा आज तुम सब कुछ लुटाओ,
बहारें लौट आयी हैं चमन खुशियाँ मनाओ।
खुशी का राग गाओ स्नेह-वीणा तुम बजाओ।
रहें फुफकारने नागेन्द्र फण नहीं विघ्न आवे,
फलें-फूलें सभी चिन्ता नहीं कोई सतावे।
मिलें सबसे सभी पावन हृदय ले मोद पावें,
खुशी औरों को देकर स्वयं भी खुशियाँ मनावें।
सितारों आज नभ के तुम सभी को मुस्कुराओ,
बहारें लौट आयी हैं चमन खुशियाँ मनाओ।
खुशी का राग गाओ स्नेह-वीणा तुम बजाओ।
-दिघवारा,
12.3.1967 ई.