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बहारे गुलसिताँ हैं और हम हैं / बलबीर सिंह 'रंग'

बहारे गुलसिताँ हैं और हम हैं,
क़फ़स में आशियाँ है और हम हैं।

मुख़ालिफ़ आसमाँ है और हम हैं,
सितमगर बागबाँ है और हम हैं।

जिन्हें मंजिल की राहों से न रग़वत,
वो मीरे कारवाँ है और हम हैं।

न कोई है कहीं भी सुनने वाला,
हमारी दास्ताँ है और हम हैं।

हमारी शायरी क्या शायरी है,
फ़क़त ‘रंगे’ वयां है और हम हैं।