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बहारों के दिन हैं कि पतझड़ का मौसम / मंजुल मयंक
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बहारों के दिन है कि पतझड़ का मौसम,
यही प्रश्न फुलवारियों से तो पूछो;
है शबनम में भीगी कि आँसू में डूबी,
ज़रा बाग की क्यारियों से तो पूछो;
अभी भी हज़ारों अधर ऐसे जिन पर,
न मुस्कान के पान अब तक रचे है;
हँसी चीज़ क्या है, ख़ुशी चीज़ क्या है,
यही प्रश्न लाचारियों से तो पूछो ।