बहुएँ कैसे रखनी ब्याही बिटिया से पूछो / अभिषेक औदिच्य
पिंजरे में जो रहती है उस चिड़िया से पूछो,
बहुएँ कैसे रखनी ब्याही बिटिया से पूछो?
पूछो, उसपर भी क्या उतनी ही पाबंदी है?
पर-जायी पर जितनी अपने घर हदबंदी है।
क्या उसको भी खुल कर हँसने पर टोका जाता?
क्या उसको भी आगे बढ़ने से रोका जाता?
क्या उसने भी वही सहा? जो ढाया है तुमने
उसके पास रखी बिन भेजी चिठिया से पूछो।
एक चिरइया कि ख़ातिर जिस आँगन में झूले,
एक चिरइया उस आंगन में हँसना भी भूले।
एक चिरइया जिस घर चहकी, फुदकी, खेली खेल।
एक चिरइया कि ख़ातिर है वही घोंसला जेल।
उड़ने की कोशिश में उसके कैसे पंख नुचे?
काँटो में जो आन फँसी, गौरइया से पूछो
जैसे क्षीर दायिनी कोई चरवाहे के संग,
जैसे डोरी में ही बंधकर उड़ती रही पतंग।
दाने के नीचे हो जैसे छिपा हुआ इक जाल।
कुछ घर जिनमें है बहुओं का बिल्कुल वैसा हाल।
दूध बढ़ाने वाली सुइयों की पीड़ा को आप,
खूंटे से जो बाँध रखी, उस गइया से पूछो।