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बहुतायत की आँधी में / निशान्त
Kavita Kosh से
जवानी की दहलीज़ पर
खिंचाई थी जो फ़ोटो
किसी तरह
सुरक्षित है आज भी घर में
लेकिन शेष जो सैंकड़ों
खिंचाई गईं आज तक
बची नहीं एक भी
बहुतायत की आँधी में
उड़ गईं सब
यही क्यों
कितनी ही तो
अच्छी चीज़ें थीं घर में
मसलन क़िताबें
पत्रिकाएँ
डायरियाँ
चिट्ठियाँ
जिन्हें संभाल नहीं पाए हम
यह तो कहानी है एक घर की
मुझे लगता है
देश
और
देश के बाहर भी
दुहराई जा रही है
यह कहानी
हर कहीं ।