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बहुत कुछ बचा है / देवेंद्रकुमार
Kavita Kosh से
शुक्र है
अभी सब खत्म नहीं हुआ
बहुत कुछ बच गया है,
क्योंकि मैं देख रहा हूं बच्चे
खेलते हुए
अधडूबे, डगमग मकानों की
ढालवां छतों पर।
अब जाकर
मेरी उदासी कम हुई है
पानी की चादर ओढ़े
खेत-मकान, आदमी-
ऊपर नीले आकाश में
पतंगें उड़ रही हैं
पेड़ों पर परिन्दे बेखबर,
मैं कहता हूं
अभी बहुत कुछ बचा है
सामने बच्चे खेल रहे हैं।