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बहुत गढ़े हैं गीत आपने / कमलकांत सक्सेना

Kavita Kosh से
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बहुत सुने हैं गीत आपने नर नारी के प्यार के.
घरवा के, पुरवा के, मीठी-फागुन चली बयार के.
नहीं सुने हैं किन्तु किसी ने, दर्दीले अफ़साने
सुने बहुत हैं गीत सभी ने, हास, वीर शृंगार के.

बचपन विरह कहानी है, कांटों भरी जवानी है,
उम्र का दर्शन है कविता मिटती नहीं निशानी है।
बहुत गढ़े हैं गीत आपने सागर के, संसार के.
मछली के, मगरों के, सावन-ढली फहार के.
नहीं लिखे हैं किन्तु किसी ने पतवारी सह गाने
लिखे बहुत हैं गीत सभी ने, धीर, वीर, गंभीर के॥

ममता जिनका सपना है, ना कोई भी अपना है
श्रम का अर्जन है आंसू, लोहू इनका चुकना है।
बहुत लिखे हैं दृश्य आपने अम्बर के, आकार के.
रजनी के, तारों के, आंगन जली कतार के.
नहीं लिखे हैं किन्तु किसी ने विषधर से परवाने
लिखे बहुत हैं खेत सभी ने, गन्ना, गेहूँ, ज्वार के॥

धन दौलत तो मिली वहीं है, मुश्किल इनकी साथी है
ऋण का अर्जन है पटना, लाश, करम ही ढोती है
बहुत पढ़े हैं शब्द आपने, वाणी के, व्यापार के.
भाषण के, नारों के, झीने दामन पली खुमार के॥

गुने नहीं हैं किन्तु किसी ने, बारूदी अफसाने
गुने बहुत हैं खेल सभी ने, जीत, मीत के, हार के॥