बहुत छली हूँ, 
अब नहीं छलना। 
 ऐ! मेरे मन, 
अब नहीं डरना। 
संत्रासों के घेरे में 
रिश्तों के अंधेरों में 
संदेहों के डेरे में 
स्वार्थों के फेरे में 
बहुत जिया है, 
अब तक डर कर। 
अब आगे न जीना। 
ऐ! मेरे मन 
अब नहीं डरना। 
तिल-तिल जलना 
 राख-सा बिखरना 
भरे नाक में जब धुआँ सा
साँस-साँस को फिर तरसना 
पोर-पोर हर दर्द को सहना 
बहुत सहा है, 
अब नहीं सहना। 
ऐ! मेरे मन 
अब, नहीं डरना॥
आशा की जंजीरों में
किस्मत लिखी लकीरों मे
न जिन्दा, न मुर्दा सी
दिखती इन तस्वीरों में। 
रोज भाग्य के घने थपेड़े
बहुत अधिक उलझी हूँ मैं। 
अब नहीं और उलझना। 
ऐ! मेरे मन 
अब नहीं डरना।