भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बहुत दिनों के बाद / माहेश्वर तिवारी
Kavita Kosh से
बहुत दिनों के बाद
आज फिर
कोयल बोली है ।
बहुत दिनों के बाद
हुआ फिर मन
कुछ गाने का
घण्टों बैठे किसी से
हंसने का, बतियाने का
बहुत दिनों के बाद
स्वरों ने
पंखुरी खोली है ।
शहर हुआ तब्दील
अचानक
कल के गाँवों में
नर्म दूब की
छुअन जगी
फिर नंगे पाँवों में
मन में कोई
रचा गया
जैसे रँगोली है ।