भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बहुत दिनों के बाद / माहेश्वर तिवारी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बहुत दिनों के बाद
आज फिर
कोयल बोली है ।

बहुत दिनों के बाद
हुआ फिर मन
कुछ गाने का
घण्टों बैठे किसी से
हंसने का, बतियाने का

बहुत दिनों के बाद
स्वरों ने
पंखुरी खोली है ।

शहर हुआ तब्दील
अचानक
कल के गाँवों में
नर्म दूब की
छुअन जगी
फिर नंगे पाँवों में

मन में कोई
रचा गया
जैसे रँगोली है ।