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बहुत दिनों से सता रहीं जो तुम्हारी यादों को थामना है / रंजना वर्मा

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बहुत दिनों से सता रही है तुम्हारी यादों को थामना है ।
नहीं कहीं रोशनी दिखी अब हुआ अंधेरों से सामना है।।

बहुत दिनों से महक रही हैं तुम्हारी यादें कि जैसे खुशबू
इन्हें छुपा लूँ मैं अपने दिल में बची यही मन में कामना है।।

न अब बहारों का आगमन है न कोई डर है मरुस्थलों का
खिला दे गुलशन जो जिंदगी का उसी बगीचे की याचना है।।

न दिख रहा दूर तक है कोई बहुत अकेली है राह मेरी
खड़ी हुई हूँ मैं मोड़ पर उस नजर से तुमको नवाजना है।।

हो दिल की गहराई में छिपे तुम तुम्हीं तमन्नाओं में बसे हो
दरश तुम्हारा मिले नजर भर यही तो मेरी अराधना है।।

है वक्त तो इम्तेहान लेता सदा सुनहरा हो स्वर्ण तप कर
दुखों की भट्ठी में तप गया जो हुआ सफल मेरा मानना है।।

नहीं बचा रहनुमा है कोई सभी के हाथों में एक खंजर
न पीठ फेरो ये भोंक देंगे इन्हें मनुजता को मारना है।।