बहुत पुरानी बात है / संध्या रिआज़
बहुत पुरानी बात है
जब आता था हंसाना मुझे हर बात पर
और हर चीज़ लगती थी सुंदर
इधर-उधर घूमते बादलों के झुण्ड में
मिल जाते हैं कई आकार,कई सूरतें
दौड़ भागती सोती जागती
सालों पुरानी बात हो गई
जब रूठना अच्छा लगता था
और माफी मंगवाने के बाद मान जाना भी
छोटे से मेले में जाकर झूला झूलना
फिर मिट्टी के सेठ-सेठानी घर लाना
कितना सुखद होता था
हफ्तों पहले और महीनों बाद तक
मन खिला-खिला रहता था
रात के अंधेरे में आंगन में सो कर
ऊपर बिखरे तारों को गिनना
और बार-बार गिनना अच्छा लगता था
अब तो ऐसा नहीं है
समय बदल गया,उम्र भी बढ़ गई
और
बदल गया समय के साथ-साथ
बादलों का घूमना,मेलों का रंग
और अंधेरे में तारों का चमकना
सब कुछ बदल गया धीरे-धीरे
अब नन्हीं किलकारियां बादल नहीं तकतीं
ना रूठ कर मनाये जाने का इंतज़ार करती हैं
ना मेले से लाती हैं मिट्टी के खिलौने
और न फुर्सत है उन्हें तारे गिनने की
सब कुछ पुरान हो गया है अब तो
एक पिछली रात का सपना सा
जिसके सच होने की चाह होती है
पर सपने कहां होते हैं सच
बहुत पुरानी बात हो गई अब तो
जब सपने सच होते थे।