भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बहुत बड़े देश में / विपिनकुमार अग्रवाल
Kavita Kosh से
मैंने
बहुत बड़े देश में
बहुत बड़े वेश में
बहुत बड़े-बड़े लोग देखे
और बड़प्पन का महत्त्व खो दिया ।
(रचनाकाल : 1957)