भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बहुत बड़े देश में / विपिनकुमार अग्रवाल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैंने

बहुत बड़े देश में

बहुत बड़े वेश में

बहुत बड़े-बड़े लोग देखे

और बड़प्पन का महत्त्व खो दिया ।


(रचनाकाल : 1957)