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बहुत बेज़ार थे हम ज़िंदगी से / शेष धर तिवारी
Kavita Kosh से
बहुत बेज़ार थे हम ज़िंदगी से
”मुहब्बत हो गयी है शायरी से “
किसी दिन धूप को मुट्ठी में लेकर
करूँगा मैं ठिठोली तीरगी से
घुटा जाता हैं दम कुदरत का देखो
हमारी खुदपरस्ती, बेहिसी से
उदासी ओढकर सोओगे कब तक
नहीं होते खफा यूँ ज़िंदगी से
चले इस आस में हम सूये सहरा
मिले राहत वहीं पर तश्नगी से
दिखा दे यार मेरे मुस्कराकर
घुटा जाता है दम संजीदगी से
हम अपनी मौत को ठुकरा चुके है
हमारा कौल था कुछ ज़िंदगी से
अज़ाबे ज़िंदगी हैरत ज़दा है
बुझी है आग पलकों की नमी से
उदासी का सबब उनसे जो पूछा
हिलाया सर बड़ी ही सादगी से
बता दे चाँद को औकात उसकी
निकल कर सामने आ तीरगी से