भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बहुत याद माज़ी की आती है यारो / रंजना वर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बहुत याद माज़ी की आती है यारो
महक बन के दिल मे समाती है यारो

गज़ब आसमाँ आँधियाँ ले के आया
यही आँधी शम्मा बुझाती है यारो

कदम रेगज़ारों में जलने लगे हैं
बहुत प्यास हमको सताती है यारो

सुना है कि है पाक गंगा का पानी
मगर अब वो नाला कहाती है यारो

हवाओं में बेचैनियाँ घुल रही हैं
यही जिंदगी को बचाती हैं यारो

कलम के धनी को है कब मौत आती
अमर यह कलम ही बनाती है यारो

उसी का करें ख़ैर मक़दम हवाएँ
कली वो जो खुशबू लुटाती है यारो