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बहुत से समय / परिचय दास
Kavita Kosh से
अनुनय की सारी मुद्राएँ
स्वस्ति भाव से
आत्मीय स्वागत में ।
संज्ञा और विशेषण विन्यस्त हो जाते हैं ।
कब से कोई है
जो हर समय यहाँ
विगत स्नेह को
वापस बुलाता है !
मौन की चाप आलाप बनी
साँस की लय में
अक्षरों में नहीं
अंतर्मन की राग-भूमि पर ।
लौटने का समय है यह
एक ही समय में होते हैं पृथ्वी पर बहुत से समय
एक ही भाव में अनंत भाव ।
केवल एक धड़कन से
अनाम प्रांतरों की धूल की
लिपि-मुक्त भाषा का पता चलता है ।