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बहुत ही सख्त हैं, अश्कों से तर नहीं होते / फ़रीद क़मर
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बहुत ही सख्त हैं, अश्कों से तर नहीं होते
ये पत्थरों के खुदा मोतबर नहीं होते
ये तोहमतें हैं तेरी, हमने खुद को देखा है
हम आईने में बुरे इस क़दर नहीं होते
हरेक संग खुदा बन के फिर रहा है यहाँ
सो मेरे शहर में शीशों के घर नहीं होते
न कोई चेहरा, न आँखें, न कोई मुँह न ज़बाँ
हमारे अह्द में लोगों के सर नहीं होते
हरेक पल किसी सूरज के साथ चलना है
ये राहे-ज़ीस्त है, इस पे शजर नहीं होते
हम आसमान की सरहद को छू के लौट आये
ये लोग कहते थे, इन्सां के पर नहीं होते