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बहुत है नाज तुमको आजकल अपनी उड़ान पर / रवीन्द्र प्रभात

बहुत है नाज तुमको आजकल अपनी उड़ान पर।
पछताओगे जब आओगे एक दिन ढलान पर।।

फ़र्क़ इतना है कि हम उन पत्थरों को तोड़ते
जिन पत्थरों को फेंकते हो तुम किसी इंसान पर।।

ठोकरें खाने से पहले जो संभल जाते नहीं
लड़खडा जाते अचानक टूटते अरमान पर।।

परछाईयाँ भी छोड़ देती साथ गर्दिश में
सख़्त हो जाती हवाएँ उम्र के अवसान पर।।

कर गया 'प्रभात' ग़ैरों के हवाले जो चमन
देखिये उस पासवाँ को फ़ख़्र है ईमान पर।।