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बहुरंगी छींट की खाल में / तेजी ग्रोवर
Kavita Kosh से
नाव को खेते, तैरते, बादल और धूप। आज मैं कुछ नहीं होना चाहता; कल देखेंगे।
— जॉर्ज सेफ़ेरिस
बहुरंगी छींट की खाल में रुई का भेड़िया। बड़ा है हाँड-माँस के आकार से। छोटे-छोटे दाँत निपोरे भागा आता है सीढ़ी-दर-सीढ़ी आँगन के पार से। लपकता है मुझपर रुई की पूरी लोच से। फिर तुम पर भागा आता है सीढ़ी के छोर से।
मैं मुस्कराते हुए उठ बैठती हूँ स्वप्न से
पहली बार जीवन में।