बहु जुग बहुत जोनि फिरि हारौ।
अब तौ एक भरोसो तिहारौ॥
जद्यपि कुटिल, कामरत, पापी।
तदपि गुलाम सदा हौं तिहारौ॥
जाउँ कहाँ तव चरन बिहाई।
लीन्हौ प्रभु-पद-कमल-सहारौ॥
बहु जुग बहुत जोनि फिरि हारौ।
अब तौ एक भरोसो तिहारौ॥
जद्यपि कुटिल, कामरत, पापी।
तदपि गुलाम सदा हौं तिहारौ॥
जाउँ कहाँ तव चरन बिहाई।
लीन्हौ प्रभु-पद-कमल-सहारौ॥