Last modified on 29 जुलाई 2016, at 03:31

बहै गंग पाताल को फिर अकाश चढ़ जाय / संत जूड़ीराम

बहै गंग पाताल को फिर अकाश चढ़ जाय।
प्रेम लहर आगें बही सुन्न देस ठहराय।
निसिदिन गंगा बह रही निसिदिन प्रेम प्रकास।
निसिदिन मक्र नहाईये जेहि होय कर्म की नास।
अगम गंग जमने मिली त्रिखैनी संग्राम।
जिन सतगुरु पूरे मिले बेई करै विश्राम।
टूड़ा घाट को साधिये उल्टी गंग चड़ाना।
उलट गंग सूधी भई पिंगल हो उतराना।
अजपा नाम थहाई ले लागौ सुकमुनि ध्यान।
अगम देश नामै चली चंद लहर फहरान।
जूड़ीराम विचार कहि गुरु ठाकुरदास शबद सुजान।