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बह जाओ इस उदासी में / मुकेश मानस

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जब घिर आये तिमिर आँखों में
और दे नहीं कुछ भी दिखाई
जब रुक जाये साँस
किसी अतल विवर में
         तब बहना ही शेष बचता है

जब हर सही निर्णय
गलत सा दिखने लगे
जब जीवन जिये जाना
बोझ सा लगने लगे
और जब ठहर जाये मन
किसी गहन उदासी में
         तब बहना ही शेष बचता है

बह जाओ इस उदासी में
जैसे बहती है हवा
जैसे बहता है पानी
जैसे बहता है समय

और बहते हुए समय में
बह जाती है उदासी भी
तुम्हें बदलने के बाद ही
2005