बाँके संकहीने राते कंज छबि छीने माते,
झुकि झुकि झूमि झूमि काहू को कछु गनै न.
द्विजदेव की सौं ऐसी बनक बनाय बहु,
भाँतिन बगारे चित चाहन चहुँवा चैन.
पेखि परे प्रात जौ पै गातन उछाह भरे,
बार-बार तातें तुम्हें बूझती कछुक बैन.
एहो ब्रजराज ! मेरो प्रेमधन लूटिबे को,
बीरा खाए आए कितै आपके अनोखे नैन.