भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बाँधकर तूफान को / श्रीप्रसाद

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हम चलेंगे बाँधकर तूफान को
तोड़ देंगे आँधियों के मान को

जिस तरह उठती समुंदर में लहर
जान पड़ता, ढा रही है वह कहर
दाँव पर देंगे लगा हम प्राण को
हम चलेंगे बाँधकर तूफान को

हैं खड़े पर्वत हमारी राह में
विघ्न हैं कुछ खंदकों के, चाह में
कर सकेंगे कम नहीं इस मान को
हम चलेंगे बाँधकर तूफान को

जो बढ़ा है, सीढ़ियों पर वह चढ़ा
हो सका है वही मंजिल पर खड़ा
समझ वाले ने लिया इस ज्ञान को
हम चलेंगे बाँधकर तूफान को

सदा सेवा भाव ही सबके लिए
हम जिएँ जैसे भला मानस जिए
हम बढ़ाएँ बस इसी पहचान को
हम चलेंगे बाँधकर तूफान को।