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बाँधे जो दो दिलों को जंजीर देखता जा / रंजना वर्मा
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बाँधे जो दो दिलों को जंजीर देखता जा
ख़्वाबों की आज अपने ताबीर देखता जा
खोली जो नाव तूने मझधार उमड़ आया
पतवार छोड़ने की तदबीर देखता जा
बाजारे मुहब्बत से था दर्दे दिल खरीदा
उल्फ़त की दवा ली है तासीर देखता जा
इजलास में खुदा के करनी अपील होगी
मेहनत से बनाई जो तहरीर देखता जा
रांझे का नाम ले के जो उम्र गंवा बैठी
दिन रात तड़पती है ये हीर देखता जा
सुन साँवरे तू तिरछी नजरों से वार करता
पैबस्त है जो दिल मे शमशीर देखता जा
फुरकत की आग में अब जलती है रूह मेरी
पल भर भी कम न होती जो पीर देखता जा