भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बाँधे जो दो दिलों को जंजीर देखता जा / रंजना वर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बाँधे जो दो दिलों को जंजीर देखता जा
ख़्वाबों की आज अपने ताबीर देखता जा

खोली जो नाव तूने मझधार उमड़ आया
पतवार छोड़ने की तदबीर देखता जा

बाजारे मुहब्बत से था दर्दे दिल खरीदा
उल्फ़त की दवा ली है तासीर देखता जा

इजलास में खुदा के करनी अपील होगी
मेहनत से बनाई जो तहरीर देखता जा

रांझे का नाम ले के जो उम्र गंवा बैठी
दिन रात तड़पती है ये हीर देखता जा

सुन साँवरे तू तिरछी नजरों से वार करता
पैबस्त है जो दिल मे शमशीर देखता जा

फुरकत की आग में अब जलती है रूह मेरी
पल भर भी कम न होती जो पीर देखता जा