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बाँध सके जो / ओमप्रकाश सारस्वत
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जो 
मन को 
मन से 
बाँध सके 
वोह 
प्यार कहीं से लाओ 
जो
हर मन का
श्रृंगार बने 
वोह 
हार कहीं से लाओ 
इक मन कहता 
इसे प्यार करो 
यह दुनिया उर्वशी 
इक मन कहता 
परित्याग करो 
यह झूठी  
दिलकशी 
जिसे 
दोनों मन स्वीकारें 
वोह इकरार कहीं से लाओ 
मन पर 
किन्हीं मञ्जुल
भावों की 
गहरी छाया है 
ज्यों 
सदियों बिछुड़ा 
प्रियतम 
लौट के घर आया है 
उसे युग-युग साथ बसाने का 
अधिकार कहीं से लाओ 
सबमें 
कुछ-न-कुछ 
अपनापन 
दम तोड़ रहा है 
हमको 
कोई सूरज 
गहन गुफा में 
छोड़ रहा है 
उसे वापिस पास बुलाने का 
आधार कहीं से लाओ 
 
	
	

