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बाँसुरी यदि हो सके तो / कल्पना 'मनोरमा'
Kavita Kosh से
बाँसुरी यदि हो सके तो
मत बजाना।
आग चूल्हे में सिमटकर
खो गई है
भूख आँचल से लिपटकर
सो गई है
सो गया है ऊब कर दिन
मत जगाना।
हाथ ले टूटे सितारे
रात रोती
आँसुओं से स्वयं का
आँचल भिगोती
हो सके तो दीप की लौ
मत बुझाना।
साँस लेती साँस तो
बजता है पिंजर
पीर रखती है हमेशा
साथ खंजर
मौन मन को हो सके तो
मत बुलाना।