भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बाँसुरी वादक / सुदर्शन वशिष्ठ

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अब नहीं खरीदता कोई बच्चा बाँसुरी
कभी मेले की तरह होता था
बाँसुरी वाला।


सभी बच्चे और बड़े भी खरीदते थे बाँसुरियाँ
बाँसुरी बजाते घर आते
शिखर घाटियों में गूँजतीं
बाँसुरी की धुनें।

बहुत मधुर लगती
वीराने में बाँसुरी
जैसे गले में हँसुली