भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बाँस की बंशी बजाती / केदारनाथ अग्रवाल
Kavita Kosh से
बाँस की
बंशी बजाती
गेहुँओं के गीत गाती-
मोदमाती
यह मही है,
प्यार जो करती सभी को।
रचनाकाल: ०८-१०-१९८६