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बाँस जे काटल बाबा बीट जे हे रोपल / अंगिका लोकगीत

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

बाँस जे काटल बाबा बीट<ref>उन बाँसों का समूह, जो एक साथ मंडलाकार उगते हैं</ref> जे हे रोपल, खंभ गराओल जी।
ओहि रे तर ठाढ़ भेलि गौरी दाय, मनहिं मन पछताबै जी॥1॥
किनका घरऽ सखिया बाजन बाजै, किनका घरऽ मँगल होबै जी।
किनका घरऽ सखिया हे हुए जगमाड़ब, किनका घरऽ हुए बिआह जी॥2॥
तोरै<ref>तुम्हारे</ref> घरऽ सखिया बाजन बाजै, तोरै घरऽ मँगल हुए जी।
तोरै घरऽ सखिया हे जगमाड़ब, तोरै घरऽ होबे बिआह जी॥3॥
कथिलै सखिया हे माघ्ज्ञ महाबल, कथिलै कारतिक मास जी।
कथिलै सखिया हे कठिन बरत कैलौं, तैयो नै मिलल रघुनाथ जी॥4॥
धन लै सखिया हे माघ नहैलौं, धरम लै कारतिक मास जी।
पुतर लै सखिया कठिन बरत कैलौं, तैयो न मिलल रघुनाथ जी॥5॥
कथि बिनु सखिया हे होमो<ref>आहुति देने का कर्म; हवन</ref> न होबै, कथि लै जग अन्हार<ref>अँधेरा</ref> जी।
धिआ बिनु सखिया हे होमो न होबै, पुतर बिनु जग अन्हार जी॥6॥

शब्दार्थ
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