भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बाँस में / मुकुन्द प्रयास / सुमन पोखरेल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तुमने अपने हाथ में पकड़े हुए
हँसिये की नोक से खोदकर
बाँस की झाड़ी में से एक बाँस पर
क्यों लिखा मेरा नाम?

कई साल बाद
पिताजी ने काटा वह बाँस
और उससे बकरी के लिए बाड़ा बनाया,
पिछले साल तक भी
बकरी का घास थामे खड़ा था,
मेरा नाम खुदा हुआ वह बाँस ।

इस बार की बारिश खत्म होने से पहले
सड़कर गिर गया वह बाड़ा,
सड़ते बाँस के टुकड़े में
अब भी था मेरा नाम ।

उसी टुकड़े को झोंककर
जलाया माँ ने
अँगीठी में आग,
और भूना मक्का और भट्ट को,
आग में बाँस का जल जाने से
मेरा नाम भी जल गया बाँस के साथ-साथ
और समाप्त हो गया
बाँस पर तुम्हारे लिखे हुए
मेरे नाम का इतिहास।

आज मैं सोच रहा हूँ -
इस बात की खबर
तुम्हें भेजूं या नहीं?

०००