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बांँटने वाली कोई जब तक हवा मौजूद है / विनय मिश्र
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बांँटने वाली कोई जब तक हवा मौजूद है
हम गले मिलते रहें पर फासला मौजूद है
और कुछ ज़्यादा संँभलकर और कुछ होकर सजग
भीड़ में जो चल सको तो रास्ता मौजूद है
मुद्दतों से सोचता हूंँ चंद सपनों के लिए
कम नहीं है आदमी लड़ता हुआ मौजूद है
इस उदासी के समय को भी बताएगा बहार
झूठ का बाज़ार लेकर मीडिया मौजूद है
आंँसुओं का इक समंदर, चुप्पियों का एक शोर
इस अकेले में गज़ब की संपदा मौजूद है
आज सड़कों पर है वह मंज़र जो क़त्लेआम का
ज़ेहन में तेरे कहीं उसका सिरा मौजूद है
बर्फ़ होकर रह गई है ज़िन्दगी अपनी मगर
अब भी पानी आंँख में कुछ गुनगुना मौजूद है