भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बांठ : अेक / प्रहलादराय पारीक

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

भोळा बांठ
कित्ती सौरफ है
थांरी गोदी में
मगन है
सांप, गोयरा
टींटण ऊंदरा
लट-फिड़कला
करै कीरतन
अधरात रा
स्यांति सूं रो‘ई में।
तूं कटै
सूंतीजै
पण नीं राखै आंट
भळै पांगरै पड्यां छांट।
करै चेतन
चूल्हौ मिनख रो
काळ-दुकाळ-त्रिकाळ
सगळा बगै ऊपरियां कर
तूं नीं निवै
नमो है तनै बांठ।
जूण रा पगफेरा नीं
पण मून साधना
सिरजै जूण
निंवै देई-देवता
बांठां में थारै
न्हाखै सिसकारा
उन्याळै-सियाळै
तपै बळै
भळै
थरपै जूण थार में
मा जायां सारू
कद जाणै सहोदर थारा।