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बांठ : अेक / प्रहलादराय पारीक
Kavita Kosh से
भोळा बांठ
कित्ती सौरफ है
थांरी गोदी में
मगन है
सांप, गोयरा
टींटण ऊंदरा
लट-फिड़कला
करै कीरतन
अधरात रा
स्यांति सूं रो‘ई में।
तूं कटै
सूंतीजै
पण नीं राखै आंट
भळै पांगरै पड्यां छांट।
करै चेतन
चूल्हौ मिनख रो
काळ-दुकाळ-त्रिकाळ
सगळा बगै ऊपरियां कर
तूं नीं निवै
नमो है तनै बांठ।
जूण रा पगफेरा नीं
पण मून साधना
सिरजै जूण
निंवै देई-देवता
बांठां में थारै
न्हाखै सिसकारा
उन्याळै-सियाळै
तपै बळै
भळै
थरपै जूण थार में
मा जायां सारू
कद जाणै सहोदर थारा।