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बांधना / साधना सिन्हा
Kavita Kosh से
बालक के रोने सा,
मन का होना
मचलना
फिर रूठना…
रूको,
अब बांधूंगी तुमको-
खूँटे से।
कस दूंगी रस्सी से
हाथ-पैर ।
लो ,
बांधा !
फिर भी हँसते हो ?
यह क्या !
मुँह खोल
चिढ़ाते हो
सारा संसार
मुझे दिखाते हो !
सच ही
तुम नटखट हो !
तुम्हें छोड़ दूंगी,
तो
जग कैसे देखूंगी !