बाइज़्ज़त बरी / रेणु मिश्रा
आसमानी स्लेट पर
चाँद की दुधिया स्याही से
तुम्हारी हर वो बात लिखना चाहती हूँ
जो कहीं दिल में घर कर गयी
या लिख देना चाहती हूँ
मेरी जुबां पर अटकी हर वो बात
जो धडकनों के बीच
कसमसा के दम तोड़ गयी
लिखना चाहती हूँ वो ताल्लुकात
जो तुम्हारे मेरे बीच
'कुछ तो है' का फलसफा कहते हैं
जो तुम्हारे मेरे दरमियाँ
अनाम से रिश्ते की बुनियाद रखते हैं
तुम्हें चाहने की बेखुद-सी तस्सली
और ना पाने की ना-उम्मीदी सुकून
दिल में बेचैनी भर कर रखता है
तुम्हारे ना होने पर भी
मुझमे ज़िन्दा रहने की
ख्वाहिश भरता है
आखिर क्यों करते हो ऐसा
कि दिल करता है
तुम्हारे बेगुनाह से गुनाहों की
फेहरिस्त को सरेआम कर दूँ
और सबसे नीचे
डिफाल्टर के तौर पर
केवल तुम्हारा नाम लिख दूँ
बस डर लगता है
कहीं तुम्हे मुल्ज़िम साबित करने की
नाक़ाम कोशिश में
दुधिया स्याही ख़त्म ना हो जाए
और तुम बिना किसी वकालत के
मेरे प्यार भरे इल्जामों से
बाइज्ज़त बरी ना हो जाओ!!