बाइपोलर / तिथि दानी ढोबले
वह देवता भी था और राक्षस भी
एक पल में जंगल का दावानल था
अगले पल में महाद्वीपों से घिरा भूमध्य सागर
कभी अभिमन्यू के सामने आया चक्रव्यूह था
तो कभी जाला बुनती मकड़ी
शख्सियत में डायनासोर का वंशज था
फलों, सब्ज़ियों पर लगा हुआ कवक था
लोगों ने दिए थे उसे उपरोक्त संबोधन
कुछ दिन तक
जागती हुई आंखों से
पहुंचता था सपनों की दुनिया में
वहां तैरता था अलग-अलग तरंगदैर्ध्यों पर
कभी वह खुद को आईने में देखता था
तो नज़र आता था झिलमिलाता सितारा
तो अगले पल होता था अमावस्या में विचरण करता प्रेत
फिर कुछ पहरों की करवट के बाद
सड़कों पर घूमता था,
सबकी नफ़रत का बारूद उसकी नसों में बहता था,
घर से, घरवालों से छूटा
खुद को कहता था
दिल की उजड़ी बस्ती का बाशिंदा,
हर मुसाफ़िर में शिकारी बाज़ देखता
खुद असहाय शिकार की तरह छुपता,
एक दिन में कई बार बदलता मौसम था।
हां.... अब अपने पूरे होशो हवास में
एक क्षण के लिए उसने कहा,
वह बाइपोलर डिसऑर्डर का मरीज़ था।
ये सच्चाई कुछ इस तरह भी हो सकती थी,
कि,
उसके मन-मस्तिष्क के झूले का अनवरत घूर्णन,
हो जाता समूची पृथ्वी का घूर्णन।
अगर, विंसेट वॉन गॉग की कूची से
कर देता आसमान को और भी रंगीन,
वर्जीनिया वुल्फ से कलम उधार ले कर
साफ कर देता अवसाद का कचरा,
बीथोवन के संगीत से दोस्ती कर
बदल देता अपनी उन्मादी ऊर्जा को स्वरलहरियों में,
माइकल एंजलो के कौशल से रच देता अप्रतिम आश्चर्य
पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण को देखता आइज़क न्यूटन की नज़र से,
विंस्टन चर्चिल के जज़्बे से करता विश्व को प्रेरित
ये सब मुमकिन था उसके लिए
अगर सही वक़्त पर रोक लिया गया होता उसे
हर खतरे और खतरे की सुगबुगाहट के आगे
कछुआ बनने से।