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बाइसवीं किरण / द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी
Kavita Kosh से
(महात्मा गाँधी के निधन पर)
फट गई धरती, फटा अम्बर, फटा ब्रह्माण्ड!
विश्व ने देखा न ऐसा क्रूर हत्याकाण्ड!!
फट गईं आँखें दिशाओं की, खड़ी वे मौन!
प्रश्न बन पूछा फणीश्वर ने कि ‘रे यह कौन?
कर दिखाई आज जिसने यह असम्भव बात!
विश्व ने देखी अचानक ही प्रलय की रात!!
गिर पड़ा कैसे हिमालय अचल-उच्च-विशाल!
श्वेत शृंगों से बही रे धार कैसे लाल!!
क्या अहिंसा-सत्य से भी था बड़ा वह शस्त्र?
आत्मा ने झुक किया स्वागत बिछा तन-वस्त्र!!’
किन्तु बतलाते हमंे संसार के ये कार्य!
अमर होने के लिये मरना अरे अनिवार्य!!
अमर हैं बापू, अमर जीवन, अमर सिद्धान्त।
विश्व की सत्प्रेरणा का स्रोत वह एकान्त॥