भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बाउल-गीत / प्रतिभा सक्सेना

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तेरे रंग डूबी, मैं तो मैं ना रही!

एक तेरा नाम, और सारे नाम झूठे,
ना रही परवाह जग रूठे तो रूठे
सुख ना चाहूँ तो से, ना रे, ना रे ना, नहीं!

एक तु ही जाने और जाने न कोई,
जाने कौन अँखियाँ जो छिप-छिप रोईं
एक तू ही को तो, मन और का चही!

बीते जुग सूरत भुलाय गई रे,
तेरी अनुहार मैं ही पाय गई रे .
पल-छिन मैं तेरे ही ध्यान में बही!

एक खुशी पाई तोसे पिरीतिया गहन,
तू ना मिला, मिटी कहाँ जी की जरन,
तेरे बिन जनम, बिन अगन मैं दही!

कि मैं झूठी, कि ये वचन झूठा,
जा पे सनेह सच, मिले सही क्या
रीत नहीं जानूँ, बस जानूँ जो कही!