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बाउ रे बात की / कालीकान्त झा ‘बूच’
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बाउ रे बात की?
दूध खाइ छाल्ही नहि
दही खाइ बेलसि
पीबो मे स्वादे नहि -
घोंटि हपसि-हपसि!
बाबूजी सुनिये ली
लोहियाक घेंट काटि
भरिभरि मटकुरी
ओहि मे ढारि ढारि दधि केर मूरी!
दफ्तर मे अहाँ लीन
रही आनि अंगना
महना मे घोंटि घोंटि
बजबैछ कंगना
माइकेर नेंत खोंट
भेलि आब चोरनी
अहूँ आब पेट काटि
हैब घरजोरनी
अहाँ सँ माइनस भेल
प्लस भेल हंडीसँ
बाबूजी साखि गेल
आँगनक मंडी सँ...