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बाएँ बाजू का टूटना / अरुण देव
Kavita Kosh से
दाएँ हाथ में बायाँ अदृश्य रहता था
दायाँ ही जैसे हाथ हो
वही लिखता था वही दरवाज़ा खोलता था वही हाथ मिलाता था
विदा के लिए वही हिलता था
हमेशा वही उठता था
भाई दोनों जुड़वा थे पर बाएँ ने कभी शिकायत नहीं की
यहाँ तक कि अपने लिए गिलास का पानी तक नहीं उठाया
न तोड़ा कभी टुकड़ा रोटी का
सुख के स्पर्श और अतिरेक में भी चुप ही रहता
शोक मैं मौन
सब दाएँ का, बाएँ का क्या ?
बायाँ टूटा और कुछ दिन लटका रहा गले से बेबस
तब दाएँ को पता चला कि बायाँ भी था
सबका एक बायाँ होता ज़रूर है ।