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बाग़ी कवि / अभय श्रेष्ठ

जिस तरह हवा के साथ नाचता है पेड़,
जिस तरह पत्तों के साथ जीवन्त रहती है धरती
उसी तरह अगर तुम मेरे संग होती,
तो मैं देखता दुनिया में केवल समता
न देखता जाति और कुल का भिन्नता,
शब्द शब्द में ढुंडता अद्वितीय सौन्दर्य,
और बनजाता मैं भी भव्य कलावादी कवि
जिस तरह फूल के साथ अभिन्न होती है सुगंध,
जिस तरह पत्तों के साथ अटूट रहती है हरियाली,
उसी तरह देश मेरे भी संग होता,
तो मैं नहीं होता बाग़ी कवि ।