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बाग़ी सारे सवाल कैसे दिन हैं / विजय किशोर मानव
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बाग़ी सारे सवाल कैसे दिन हैं
हर चेहरा है दलाल कैसे दिन हैं
अपने मौक़ा पाकर चेहरों को छीलते
मलते-मलते गुलाल कैसे दिन हैं
हंस मानसर छोड़ बूंद-बूंद पानी को
भटक रहे ताल-ताल कैसे दिन हैं
हांड़ी में पानी रखे ठंडे चूल्हे पर
भूख रही है उबाल कैसे दिन हैं
हर किसान धोखों के पांवों पर सर रखे
ख़ुश है पाकर अकाल कैसे दिन हैं
हर विभूति कर रही नियम-संयम से
जनपथ पर क़दमताल कैसे दिन हैं