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बाग़ी हो गई है स्त्री / रंजना जायसवाल
Kavita Kosh से
जीना चाहती है सौ बसंत
इन्द्र धनुषी रंगों से
रंगना चाहती है जीवन
रोना,हँसना चाहती है
अपनी मर्जी से
विचार और कर्म के
सुनहरे तारों से
मढ़ना चाहती है अस्तित्व
बागी हो गयी है स्त्री।