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बागे सबा बहार को लाती जरूर है / रंजना वर्मा

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बागे सबा बहार को लाती जरूर है
ऐसे में तेरी याद भी आती जरूर है

चाहे सुने न कोई कभी दास्ताने ग़म
दुखियों की आह फिर भी सताती जरूर है

जिस राह पे रख के है कदम पाँव बढ़ाया
जानिब वो मंजिलों के तो जाती जरूर है

बेकार से लगते हैं मुफ़लिसी के फ़लसफ़े
लेकिन सभी को बात ये भाती जरूर है

कोयल पुकारतीं है पपीहा भी टेरता
इनकी पुकार दिल को लुभातीं जरूर है

मत मुफ़लिसी की बात करो हमसे दोस्तों
गुरबत किसी मुकाम पे लाती जरूर है
 
देखो न आईना न सुनो बात अना की
मंज़िल तो एक बार बुलाती जरूर है