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बाघ, भालू, भेड़ियों से सामना है / अमरेन्द्र

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बाघ, भालू, भेड़ियों से सामना है
तुरत सोचो ठहरना या भागना है

जो करे अपराध पूजित ही रहे वो
आपकी सबसे अलग यह भावना है

हो गया तय रात में भूकम्प होता
दिन में सोना रात को अब जागना है

वह बने वामन तो रह सकता नहीं
तीन लोकों को जिसे कि नापना है

अब नहीं आँखों को होता है नसीब
द्वार-देहरी आँगने में अलपना है

इस सदी में और है यह काम करना
आग पर पानी के अक्षर छापना है

गालियाँ अमरेन्द्र को दे पाओ इज्जत
यह तो घर को ही जला कर तापना है।