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बाजरे की रोटी पोई रे हालिड़ा / हरियाणवी
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हरियाणवी लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
बाजरे की रोटी पोई रे हालिड़ा, बथुए का रांध रै साग
आठ बलधां का रै हालिड़ा नीरणा चार हालिड़ा की छाक
बरसन लागी रे हालिड़ा बादली
सास नणद का रे हालिड़ा ओलणा इब कूण उठाये छाक
कसकै तै रे बांधो गोरीधन लाऊणा झटदे उठाल्यो छाक
ड्योलै तै ड्योला रे हालिड़ा मैं फिरी कितै ना पाया थारा खेत
ऊंच्चे चढ़कै गोरीधण देख ले म्हारे धोले बलध कै टाल
पाछा तैं फिर कै रे हालिड़ा देख ले, कोई बोझ मरै छकियार
किसाक जाम्या रे हालिड़ा बाजरा किसीक जाम्मी सै जुआर
लाम्बे तै सिरटे गोरीधण बाजरा, मुड़वां सिरटै जुआर
कै मण बीघे निपजै रे हालिड़ा बाजरा, कै मण बीघे जुआर
नौ मण बीघे निपजा गोरी बाजरा, दस मण बीघे जुआर
अपणै घड़ाले रे हालिड़ा गोखरू मेरी भंवर की नाथ