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बाज़ारवाद / सरोज परमार
Kavita Kosh से
हादसा यह नहीं है कि
मौसम ने बदले है मिजाज़
यह भी नहीं कि बाज़ार
निकल गया है कहीं आगे जेब से
यह भी नहीं कि
बचपन ने पहन लिया है
बाप का जूता फटाफट
शायद यह भी नहीं कि पोपले मुँह
भाग रहे हैं वियाग्रा के लिए
दवाफ़रोशों के पास.
इस सदी का सब से बड़ा हादसा है
कि पानी माँगते राहगीर को देख
दरवाज़ा बंद कर लेते हैं बच्चे
कुचले आदमी को अनदेखा कर
गुज़र जाते हैं फ़र्राटे भर कर
मकानों की तरह किराए पर उठ रही है कोख
कैमूर के जंगल में भूख से लड़ती औरत
नहीं समझ पाती महिला दिवस का अर्थ
अपनी देह को पुश्त-दर-पुश्त सजी प्लेट-सी, परोसने वाली
कोकराझार से नामीबिया तक की औरत
नहीं जान पाई सहस्राब्दि के
नए सूरज का अर्थ
सच तो यह है कि
संवेदना बाज़ारवाद की शिकार हो गई.