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बाज़ार-1 / रंजना जायसवाल
Kavita Kosh से
पहले वे जरूरतें पैदा करते हैं
शुरू -शुरू में पूरी भी करते हैं जरूरतें
पर आदी बनते ही
तटस्थ हो जाते हैं
फिर रह जाता है आदमी
अभाव में छटपटाता