भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बाज़ार-5 / विमल कुमार

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जो बाज़ार में खड़ा है
वही दिख रहा है मुस्कुराता
जो बाज़ार में गिर गया
उसे रौंदते हुए एक मोटर चली गई